अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग ने हाल ही में भारतीय शेयर बाजार नियामक SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन आरोपों में मॉरिशस के ऑफशोर फंड्स का जिक्र किया गया है। मॉरिशस के फाइनेंशियल सर्विस कमिशन (FSC) ने इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया है कि जिन फंड्स का हवाला दिया गया है, वे मॉरिशस से संबंधित नहीं हैं
Overview
FSC का बयान
FSC ने स्पष्ट किया कि उनके देश में शेल कंपनियों को अनुमति नहीं है और IPE प्लस फंड तथा IPE प्लस फंड-1 को मॉरिशस में कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है। FSC ने यह भी कहा कि मॉरिशस में सभी ग्लोबल बिजनेस फर्मों के लिए सख्त नियम लागू होते हैं और उन्हें लगातार निगरानी में रखा जाता है।
हिंडनबर्ग के आरोप ; Hindenburg Report
हिंडनबर्ग ने SEBI चीफ और उनके पति पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सिंगापुर में IPE प्लस फंड-1 के साथ खाता खोला, जिसमें $10 मिलियन का निवेश था। हिंडनबर्ग ने यह भी दावा किया कि यह फंड अडानी समूह के निदेशक द्वारा स्थापित किया गया था और इसका उपयोग टैक्स हेवन मॉरिशस में किया गया।
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Hindenburg Report पर मॉरिशस की प्रतिक्रिया
मॉरिशस ने हिंडनबर्ग के इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और कहा कि मॉरिशस एक पारदर्शी क्षेत्राधिकार है और इसे टैक्स हेवन नहीं कहा जा सकता। FSC के अनुसार, मॉरिशस में कोई भी शेल कंपनी नहीं है और इस फंड से उनका कोई संबंध नहीं है।
हिडनबर्ग की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि सेबी चीफ और उनके पति ने मॉरिशस स्थित फंड में निवेश किया था। इस पर मॉरिशस के FSC ने दो टूक जवाब दिया कि ऐसा कोई फंड मॉरिशस में रजिस्टर्ड नहीं है। मॉरिशस की छवि को ‘टैक्स हेवन’ के रूप में पेश करने के आरोप को भी FSC ने खारिज कर दिया।
निष्कर्ष
हिडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप के निदेशकों और सेबी चीफ के बीच संभावित संबंधों का जिक्र किया गया है। इससे पहले भी हिडनबर्ग ने अडानी ग्रुप पर गंभीर आरोप लगाए थे, जिनके बाद भारतीय शेयर बाजार में उथल-पुथल मची थी। हालांकि, मॉरिशस के ताजा बयान ने हिडनबर्ग के इन आरोपों को कमजोर कर दिया है।
मॉरिशस ने हिंडनबर्ग के आरोपों को खारिज कर दिया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके देश में कोई शेल कंपनी नहीं है। यह विवाद अब और गहरा हो गया है, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे क्या होता है। SEBI चीफ पर लगे इन आरोपों ने भारतीय शेयर बाजार और नियामक प्रक्रिया में भरोसे को प्रभावित किया है।
आगे का मार्ग
यह मामला अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय और अंतरराष्ट्रीय नियामकों की निगरानी प्रक्रियाओं में और अधिक पारदर्शिता और सख्ती की मांग हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मामले में और कौन-कौन से मोड़ आते हैं।
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